श्मशान घरों की अंत्येष्टि के इंतजार में ग्राम प्रधान
मथुरा। भारत गांव का देश है और आज भी देश की 70% आबादी गांव में निवास करती है कि ” असली भारत गांव में बसता है” महात्मा गांधी द्वारा कहां गया यह कथन आज भी सटीक बैठता है। बलवंत राय मेहता कमेटी द्वारा त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत व्यवस्था को मजबूत करने हेतु प्रस्ताव पर मुहर लगी।उसके उपरांत भारत में स्थानीय स्तर पर गांव, न्याय पंचायत और जिला पंचायत को मजबूत करने हेतु कानून लागू किया गया। यह कानून लागू करने का मुख्य उद्देश्य गांव के जीवन स्तर को ऊपर उठकर गांव के अंदर मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाना था लेकिन आजादी के 75 वर्ष बीतने के उपरांत आज भी यह पंचायतें अपने अस्तित्व की लड़ाई को लड़ने हेतु मजबूर हैं।भारत में लगभग साढे 6. 50 लाख ग्राम पंचायतें हैं और उत्तर प्रदेश में लगभग साढे 58000 ग्राम पंचायत हैं।
पंचायत राज व्यवस्था भारत सरकार द्वारा पंचायती राज विभाग और ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन चलाई जाती है जिससे गांव के अंतर्गत सड़क ,पानी, स्वास्थ्य ,शिक्षा ,सुरक्षा, आंगनबाड़ी , मनरेगा , शमशान स्थलों का विकास , अमृत सरोवर,तालाबों का पुनरुद्धार आदि विषयों के ऊपर काम किया जाता है। भारत सरकार के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा ग्राम पंचायत के सर्वांगीण विकास हेतु असाधारण प्रयास किया जा रहे हैं । ग्राम पंचायत में महिलाओं को सशक्तिकरण करने हेतु सरकार के द्वारा 50% आरक्षण की व्यवस्था की गई जिससे महिलाओं का जीवन स्तर ऊपर उठ सके और आत्मनिर्भर बन सके। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के लिए भारी मात्रा धन जारी किया जा रहा है जो कि राज्य सरकार के द्वारा गांव में पहुंच रहा है लेकिन गांव के पंचायत का नेतृत्व कर रहे प्रधान, सरपंच और मुखियाओं के द्वारा इन कार्य योजनाओं में रुचि न लेकर के अपने कामों में रुचि लेने के कारण जो सरकार की मनसा के अनुसार विकास होना चाहिए उस मापदंड पर यह पंचायत खरा उत्तर पाने में अपने आप को असमर्थ महसूस पा रही हैं।
हम लोगों ने देखा कि उत्तर प्रदेश हो ,बिहार हो ,झारखंड मध्य प्रदेश, राजस्थान ,हरियाणा या कोई अन्य छोटा राज्य सब जगह व्यवस्था एक जैसी है ग्राम पंचायत में प्रधान का साथ देने हेतु पंचायत सचिव की नियुक्ति है और अभी कुछ समय पहले पंचायत सहायकों की नियुक्ति भी राज्य सरकार द्वारा की जा रही है। जिससे कि गांव और पंचायत का विकास का पहिया सरपट दौड़ सके और प्राइमरी सेक्टर मजबूत हो जिससे कि गांव की अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके। लेकिन इसके उलट ग्राम प्रधानों द्वारा गांव का विकास ना करके अपने विकास पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है जिससे पंचायत का विकास पीछे चला गया है कुछ जगह तो देखने में आया है कि उस ग्राम की प्रधान महिला है और उसकी प्रधानी उसके पति चला रहे हैं, उसके पुत्र चला रहे हैं और उसके प्रतिनिधि चला रहे है।
तो अपने आप में अब यह सवाल उठता है क्या यह वास्तव में पंचायत का सशक्तिकरण है और यह महिलाओं का सशक्तिकरण है यह सिर्फ कागजों में सशक्तिकरण महसूस होता है धरातल पर यह स्थिति नगण्य है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश के अंदर मौजूद पंचायत के विकास के लिए भरसक प्रयास किया जा रहे हैं और पंचायत के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही है ।जिसमें अंत्येष्टि विकास स्थल योजना एक प्रमुख योजना है जिसके अंतर्गत ग्राम पंचायत में मौजूद श्मशान स्थल के विकास हेतु अलग से राशि का आवंटन किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में स्थित 75 जिलों में प्रतिवर्ष हर जिले के 10 से 12 पंचायत को शमशान स्थल विकास योजना के तहत 24 से 30 लाख रुपए प्रतिवर्ष जारी किया जाता है।
इस योजना में प्रत्येक ब्लॉक के अंतर्गत एक से दो पंचायत का चयन किया जाता है और जिला पंचायत राज अधिकारी द्वारा मुख्य विकास अधिकारी के नेतृत्व में इन अंत्येष्टि स्थलों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है। सरकार द्वारा मथुरा जिले को गत/ पिछले वर्ष जुन सिटी, सेरसा, फातिहा, शाहपुर बांगर, पटलोनी , बिसावली ,गुडेरा, खाजपुर , अरूवा बांगर , कादौना ,अगरयाला ,सिंह और नगला हुमायूं देह को बजट आवंटन किया गया था जिस पर विभाग को काम करना था। इसी बीच उस समय की जिला पंचायत राज अधिकारी किरण चौधरी को उनके ड्राइवर द्वारा रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और वह भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में भी बंद रही हाल ही में उनकी जमानत हुई है।अब सवाल यह उठता है कि यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट तो नहीं चढ़ गई।
यह देखना मुनासिब होगा कि उनके स्थान अलीगढ़ के पूर्व जिला पंचायत राज अधिकारी धनंजय जायसवाल, जिन्होंने मथुरा जिला पंचायत राज अधिकारी का पदभार संभाला है वह ग्राम पंचायतो के विकास में अपना कितना योगदान दे पाते हैं। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा, ब्रज में जो भी अधिकारी यहां आए वह भ्रष्टाचार के आरोपों से अपने आप को बचा नहीं पाए। मथुरा जिले के अधिकतर अंत्येष्टि स्थल अपने खुद की अंत्येष्टि का इंतजार कर रहे हैं क्या इन अंत्येष्टि स्थलों का विकास सरकार के मानकों के अनुरूप हो पाएगा यह देखना होगा।
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